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आ म॒न्द्रमा वरे॑ण्य॒मा विप्र॒मा म॑नी॒षिण॑म् । पान्त॒मा पु॑रु॒स्पृह॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā mandram ā vareṇyam ā vipram ā manīṣiṇam | pāntam ā puruspṛham ||

पद पाठ

आ । म॒न्द्रम् । आ । वरे॑ण्यम् । आ । विप्र॑म् । आ । म॒नी॒षिण॑म् । पान्त॑म् । आ । पु॒रु॒ऽस्पृह॑म् ॥ ९.६५.२९

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:65» मन्त्र:29 | अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:6» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:29


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (मन्द्रं) जो आप सर्वोपरि स्तुति करने योग्य हैं, (वरेण्यम्) वरण करने योग्य हैं, (विप्रम्) मेधावी हैं, (मनीषिणम्) मन के स्वामी हैं, (पुरुस्पृहं) सब पुरुषों के कामना करने योग्य हैं, (पान्तं) सबके रक्षक हैं, ऐसे आपको (आ) “आवृणीमहे” हम लोग सब प्रकार से स्वीकार करते हैं ॥२९॥
भावार्थभाषाः - उक्तगुणसम्पन्न परमात्मा का वरण करना अर्थात् सब प्रकार से स्वीकार करना इस मन्त्र में बताया गया है। “आ” शब्द यहाँ प्रत्येकगुणसम्पन्न परमात्मा को भली-भाँति वर्णन करने के लिये आया है ॥२९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! (मन्द्रं) स्तुत्यं (वरेण्यम्) वरणीयं (विप्रम्) मेधाविनं (मनीषिणम्) मनःस्वामिनं (पुरुस्पृहं) सर्ववरणीयं (पान्तं) सर्वपवितारं भवन्तं जगदीश्वरं (आ) आवृणीमहे स्वीकुर्मो वयम् ॥२९॥